सोनभद्र। जिला कृषि रक्षा अधिकारी सोनभद्र डॉ.हरि कृष्ण मिश्रा ने अवगत कराया है कि किसान भाइयों रबी की प्रमुख फसलों में गेहूँ, राई/सरसों, मटर एवं आलू में लगने वाले कीट/रोग एवं खरपतवारों से बचाव हेतु नियमित निगरानी करें। कीट, रोग के के लक्षण परिलक्षित होने पर तत्काल सुझाव एवं संस्तुतियों को अपनाकर फसल को बचा सकते है। उन्होंने बताया कि गेहूँ में चैड़ी एवं संकरी पत्ती वाले खरपतवारों जैसे गुल्ली डंडा, चटरी-मटरी, बथुआ, कृष्णनील आदि की समस्या देखी जाती है। संकरी पत्ती वाले खरपतवारों यथा-गेहूँ सा एवं जंगली जई के नियंत्रण हेतु सल्फोसल्यूरॉन 75 प्रतिशत डब्लू०जी० 33 ग्राम (2.5 यूनिट) मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर प्रथम सिंचाई के बाद 25-30 दिन की अवस्था पर छिड़काव करें। चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों हेतु मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्लू०पी० 20 ग्राम मात्रा को लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टयर की दर से फ्लैट फैन नाजिल से प्रथम सिंचाई के बाद 25-30 दिन की अवस्था पर छिड़काव करें। राई/सरसोः-मौसम के तापमान में गिरावट होने पर राईध्सरसों की फसल माहू कीट के प्रकोप होने की सम्भावना होती है। यदि कीट का प्रकोप आर्थिक क्षति पर (5 प्रतिशत प्रभावित पौधे) से अधिक हो तो निम्नलिखित रसायनों में से किसी एक को प्रति हेक्यर की दर से लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई०सी० 2.50 लीटर। थायामेथोक्साम 25 डब्ल्यूजी 50-100 ग्राम। आक्सीडिमेटान मिथाइल 25 प्रतिशत ई०सी० 1.0 लीटर। क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई०सी० 500 मि०ली० । आलू की फसल में अगेती ध् पछेती झुलसा रोग का प्रकोप होने पर पत्तीयों पर भूरे एवं काले रंग के धब्बे बनते है तथा तीव्र प्रकोप होने पर सम्पूर्ण पौधा झुलस जाता है रोग के प्रकोप की स्थिति में निम्नलिखित रसायनों में से किसी एक का प्रयोग कर सकते हैं।