Premanand Ji Maharaj Vachan: प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक हैं जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाते और बताते हैं. प्रेमानंद जी के अनमोल विचार जीवन को सुधारने और संतुलन बनाएं रखने में मार्गदर्शन करते हैं.
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं जैसे हम अपने दोनों नेत्रों में कौन श्रेष्ठ है इस बात को नहीं बता सकते हैं. उसी प्रकार ग्रहस्थ और संयासी में कौन श्रेष्ठ है यह बताना भी मुश्किल है. दोनों को ही प्रेमानंद जी महाराज से श्रेष्ठ बताया है. गृहस्थ जीवन से ही संयासी की शुरुआत होती है. संत महात्मा गृहस्थ से पैदा होते हैं. इसके बाद बिरक्त हो जाते हैं. इसके बाद उनका पालन पोषण गृहस्थों से होता.
प्रेमानंद जी का मानना है कि गृहस्थ हमारी दाहिनी आंख के समान है. गृहस्थों को उपदेश देकर भागवत प्राप्ति संत ही कराते हैं. संत जन ही हमें पाप रहित बनाते हैं. सत मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी संत ही दिखाते हैं. तो दोनो आंखों के समाना गृहस्थ और दूसरी बिरक्त को रखा गया है. साथ ही यह भी बताते हैं कि दोनों आंखों की एक ही दृष्टि है और वो हैं भगवान. अगर भगवान की प्राप्ति नहीं हुई तो गृहस्थ, गृहस्थ नहीं और विरक्त, विरक्त नहीं. अपनी जगह दोनों महान है. कोई छोटा बड़ा नहीं. आप संत को बड़ा मानते हो और प्रणाम करते हो उनका सम्मान करते हो, वहीं संत आपको बड़ा मानते हैं वो सब में भगवान को देखते हैं. संत भिक्षा लेता है और शिक्षा देता है दोनों का बराबर का नाता है, भिक्षा और शिक्षा का, माया जीव अपनी माया के द्वारा संत सेवा करता है, वो ज्ञानी महापुरुष अपने ज्ञान के द्वारा गृहस्थ की सेवा करते हैं.
गृहस्थ अन्न, वस्त्र के द्वारा संत की सेवा करता है, संत भजन, तपस्या, साधना के द्वारा गृहस्थ की सेवा करते हैं. दोनों एक दूसरे के पुरख है, और दोनों ऐसे हैं जैसे दोनों दृष्टि हो हमारी. लेकिन दृष्टि एक है, दोनों का लक्ष्य भगवान की प्राप्ति है.
किसको ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
गृहस्थ और संत दोनों का ही मार्ग चुनौती भरा है. गृहस्थ का मार्ग साधारण नहीं, उसके पास ना ना प्रकार की चिंताएं हैं, साथ में मनुष्य सेवा करता है भगवान का नाम लेता है. साथ ही विरक्त के पास अपनी चुनौतियां है पूरे जीवन में ब्रह्मचर्य से रहना, ना मनोरंजन, ना प्रेम किसी लोभ में नहीं रहता. वो इन चिंताओं से जलता है, विरक्त के पास भी जलन है और वह अपनी हर मांग को दबा रहा है हर मांग को रोक रहा है. दोनों सामान चुनौतियों वाले हैं. साधु पूरे जीवन भर किसी का प्यार नहीं पाता, ना मां का, भाई का, पत्नी का. किसी प्रकार का कोई मनोरंजन सुख नहीं ले पाता. भगवान ने जन्म दिया अपने अपने कर्तव्यों का पालन करते रहें.भगवान की प्राप्ति करनी है तो अपनी-अपनी पूजा करें, साथ ही नाम जप जरुर करें और पाप-कर्म ना करें. तभी आपको वहीं गति प्राप्त होगी जो संत को प्राप्त होती है.भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मेरा स्मरण करते हुए युद्ध करें या जीवन को जिए तो भगवान की प्राप्ति अवश्य होगी.
Premanand Ji Maharaj: आत्मज्ञान की प्राप्ति कैसे हो, जानें प्रेमानंद जी महाराज से उनके अनमोल वचन
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