Saraswati River: हिंदू धर्म में नदियां प्राचीन काल से ही पूजनीय रही हैं. गंगा, जमुना, नर्मदा के अलावा सरस्वती नदी भी महत्वपूर्ण मानी जाती है. प्रयागराज में भी गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है.
मान्यता है कि महाकुंभ में इसी संगम तट पर स्नान करने वालों के जन्मों जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं. त्रिवेणी पर गंगा-यमुना तो दिखती हैं लेकिन सरस्वती नदी नजर नहीं आती, आखिरी कैसे लुप्त हुई सरस्वती नदी, क्या ये पवित्र नदी आज भी थार रेगिस्तान के नीचे बह रही है जानें इन्हीं सवालों के जवाब.
वेदों में सरस्वती नदी
वैदिक धर्मग्रंथों के अनुसार धरती पर नदियों की कहानी सरस्वती से शुरू होती है. ऋगवेद और महाभारत जैसे ग्रंथों में सरस्वती नदी का जिक्र है. ऋग्वेद के नदी सूक्त में कई नदियों का वर्णन हैं, लेकिन इसके एक सूक्त में सरस्वती नदी को नदीतमा कहा गया है. नदीतमा का अर्थ है, नदियों में सबसे उच्च और पवित्र. ऋग्वेद में सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहती हुई बताया गया है.
धार्मिक मान्यताओं में सरस्वती नदी को गंगा के समान पवित्र माना जाता है. सदियों से हमारी सभ्यता और विरासत को अपने में समेटने वाली धरोहर है सरस्वती नदी. शास्त्रों की विरासत को खुद में समेटे रखने वाली ये वो नदी है जिसके किनारे सबसे पहले सभ्यता जन्मी.
कैसे विलुप्त हुई सरस्वती नदी
सरस्वती नदी का उद्गम-स्रोत हिमालय है. लेकिन इसके निशान गुजरात, हरियाणा और पंजाब से लेकर राजस्थान तक मिलते हैं. ये हैरान करने वाली बात है कि इतनी विशालकाय नदी आज कुछ स्थानों पर सिर्फ एक पतली धारा बनकर नजर आती है. सरस्वती नदी विलुप्त होने का कारण भूगर्भीय बदलाव हो सकता है. कुछ लोग आज भी मानते हैं कि सरस्वती नदी धरती के नीचे बहती है. थार के रेगिस्तान में खोज के दौरान मिली नदी को सरस्वती नदी माना जाता है.
रामायण में भी सरस्वती नदी का जिक्र
सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च, उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारूण्डं प्राविशद्वनम्
इस श्लोक के अनुसार वाल्मीकि रामायण में जब भरत कैकय देश से अयोध्या पहुंचते हैं तब उनके आने के प्रसंग में सरस्वती और गंगा को पार करने का वर्णन है.
सरस्वती नदी को मिला श्राप
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि महाभारत काल में सरस्वती नदी को दुर्वासा ऋषि से यह श्राप मिला था कि वह कलयुग आने तक वह लुप्त रहेंगी, कल्कि अवतार के बाद भी उनका धरती पर आगमन होगा.
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