अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत से फार्मास्यूटिकल्स के निर्यात पर टैरिफ लगाने को लेकर फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है. हालांकि ट्रंप के इस फैसले को लेकर अभी कोई स्पष्टता नहीं है. डोनाल्ड ट्रंप के भारत के फार्मास्यूटिकल्स के निर्यात पर टैरिफ लगाने से ना सिर्फ अमेरिका में दवाएं महंगी होंगी बल्कि अमेरिका में भारतीय दवाओं की कमी भी हो सकती है.
भारत की सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी सन फार्मा के मैनेजिंग डायरेक्टर (MD) और चेयरमैन दिलीप सांघवी ने कहा, ‘उनकी कंपनी अमेरिका को 1 डॉलर से 5 डॉलर के बीच दवाएं बेचती है और ऐसे में अमेरिका की तरफ से 10-25 प्रतिशत टैरिफ लगाने से कीमतों में बदलाव होगा. इसके अलावा टैरिफ बढ़ जाने से मैन्युफैक्चरर्स पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.
‘कीमतें बढ़ने से ग्राहकों पर बढ़ेगा बोझ’
सन फार्मा के मैनेजिंग डायरेक्टर दिलीप सांघवी ने कहा,’अमेरिका में बेची जाने वाली दवाओं के लिए लाभ मार्जिन इतना कम है कि टैरिफ को झेल पाने की क्षमता काफी सीमित है. उन्होंने आगे कहा, ‘आखिरकार दवा की बढ़ी कीमतों से कस्टमर ही प्रभावित होगा. वित्तीय वर्ष 2024 में सन फार्मा ने अपनी कुल सेल्स का 32 प्रतिशत (47,800) करोड़ अमेरिका को निर्यात किया था जो कि भारत की मार्केट से 31 प्रतिशत अधिक है.
‘अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की बड़ी डिमांड’
भारत में दवा बनाने वाली तीसरी सबसे बड़ी कंपनी सिपला के ग्लोबल सीईओ उमंग वोहरा ने कहा,’अमेरिका से भारत में फार्मास्युटिकल उत्पादों के इंपोर्ट की मात्रा उतनी महत्वपूर्ण नहीं है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर कोई बड़ा दवा ब्रांड (अमेरिका या यूरोप से) भारत में बहुत अधिक कीमतों पर दवाएं बेचता है तो हमारे समाज के एक बड़े वर्ग में इसे खरीदने की क्षमता नहीं है. भारत में टैरिफ किसी भी मामले में 0% से 10% के बीच है और ज्यादातर जीवनरक्षक दवाओं पर यह शून्य है.’
सिपला के ग्लोबल सीईओ उमंग वोहरा ने कहा, ‘दूसरी तरफ अमेरिका को भारतीय कंपनियों से बहुत कम टैरिफ की जरूरत है क्योंकि जेनेरिक दवा इंडस्ट्री ही एकमात्र ऐसा उद्योग है जो उनके (अमेरिकी) स्वास्थ्य देखभाल के खर्च को कम करता है.’
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