आईसीएमआर ने कई बड़े बदलावों का एलान किया है। देश की इस शीर्ष संस्था ने कहा, नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, एकीकृत अनुसंधान में इस्तेमाल होने वाली दवाओं को अतिरिक्त सुरक्षा परीक्षण या इस्तेमाल से पहले क्लीनिकल ट्रायल या अध्ययन की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, गैर-संहिताबद्ध पारंपरिक दवाओं को संपूर्ण नियामक अनुमोदन प्रक्रिया से गुजरना होगा।
एकीकृत चिकित्सा परीक्षण में इंसानों के शामिल होने पर नियमों का पालन
बुधवार को जब आईसीएमआर ने इन बदलावों का एलान किया तब उसने इंसानों पर किए जाने वाले परीक्षणों को लेकर विस्तृत आलेख प्रकाशित किया। इसमें बताया गया है कि जब जैव चिकित्सा और स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए इस्तेमाल होने वाली दवाओं के एकीकृत चिकित्सा परीक्षण (Research in Integrative Medicine) में इंसान शामिल होंगे तो पहले से निर्धारित संरचित नैतिक ढांचे के दायरे में काम करना होगा।
2017 में तय हुए थे राष्ट्रीय नैतिक दिशा-निर्देश
यह करीब आठ साल पहले प्रकाशित दिशानिर्देशों का ही अंग माना जाएगा। आईसीएमआर ने साल 2017 में इंसानों पर ट्रायल के लिए जैव-चिकित्सा और स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय नैतिक दिशा-निर्देश (National Ethical Guidelines for Biomedical and Health Research Involving Human Participants) बनाए थे।
स्वास्थ्य देखभाल के वैज्ञानिक आधार को मजबूत करने का प्रयास
आईसीएमआर पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के एकीकरण की खोज के लिए होने वाले रिसर्च में आयुष आधारित एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल के वैज्ञानिक आधार को मजबूत करने का प्रयास कर रही है। ऐसे अनुसंधान की देखरेख करने वाली आचार समितियों में अब दो आयुष विषय-वस्तु विशेषज्ञों को शामिल करना अनिवार्य होगा। इनमें कम से कम सदस्य संस्थान से बाहर का होना चाहिए।
इन कानूनों के तहत काम करना होगा
सूचित सहमति मानकों को मजबूत किया गया है। अब अनुसंधान प्रतिभागियों को एकीकृत चिकित्सा हस्तक्षेपों के बारे में स्पष्ट, अनुकूलित जानकारी देना अनिवार्य होगा। अनुसंधान की पूरी अवधि में जैव-चिकित्सा और क्लीनिकल रिसर्च के लिए भारत के मानक नैतिक दिशानिर्देशों का पालन भी करना होगा। सभी अनुसंधानों के दौरान 1940 में बने औषधि एवं प्रसाधन सामग्री कानून और 2019 में बने नई औषधि एवं क्लीनिकल परीक्षण नियम के तहत ही करना होगा। बता दें कि आयुष प्रणाली के तहत दवाओं के उत्पादन के लिए अच्छे क्लीनिकल अभ्यास (जीसीपी) को लेकर भी दिशानिर्देश बनाए गए हैं।
आयुष मंत्रालय के सचिव ने बताया फैसले का मकसद
पूरे घटनाक्रम और मानकों के निर्धारण पर आयुष मंत्रालय ने कहा, परिशिष्ट प्रकाशित करने का उद्देश्य एकीकृत चिकित्सा अनुसंधान में शामिल शोधकर्ताओं, संस्थानों, नैतिकता समितियों (ईसी) और नियामक निकायों का मार्गदर्शन करना है। इसका मकसद वैज्ञानिक अखंडता सर्वोपरि रखते हुए रोगी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा कि इन नैतिक दिशानिर्देशों को शामिल करना वैज्ञानिक समुदाय को अधिक विश्वसनीय बनाएगा। उन्होंने कहा कि यह फैसला आत्मविश्वास के साथ एकीकृत चिकित्सा का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में उठाया गया कदम है।
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