फिल्म निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री इस बार एक ऐसी फिल्म लेकर आए हैं, जिसे देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. जी हां, हम बात कर रहे हैं ‘द बंगाल फाइल्स’ की, जो आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. यह फिल्म विवेक की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ से भी ज्यादा बोल्ड है. इस फिल्म के जरिए उन्होंने पश्चिम बंगाल की एक अनसुनी कहानी सबके सामने पेश की है, जिससे शायद ज्यादातर लोग अनजान हैं. फिल्म की कहानी भारत की आजादी और भारत-पाकिस्तान बंटवारे से पहले की है. आजादी से ठीक एक दिन पहले पाकिस्तान भारत से अलग होकर एक नया देश बना, लेकिन इस बंटवारे की आग उससे पहले ही सुलग चुकी थी और इसी दौरान पश्चिम बंगाल में नरसंहार हुआ था, जिसमें न जाने कितने लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. यह फिल्म उसी के बारे में है.
विवेक रंजन अग्निहोत्री की ‘द बंगाल फाइल्स’ की कहानी 16 अगस्त 1946 के डायरेक्ट एक्शन डे की सच्ची घटनाओं पर आधारित है. कहानी खास कर के बीते कल और आज के दिनों में लेकर जाती है. फिल्म डायरेक्ट एक्शन डे की कहानी को अलग-अलग तरीके और किरदारों की नजरों से पेश करती है. इस फिल्म में आपको लगभग स्टारकास्ट वहीं हैं, जिन्होंने ‘द कश्मीर फाइल्स’ में भी काम किया था. फिल्म में दर्शन कुमार ने शिवा पंडित का किरदार निभाया है, जो एक पुलिस अधिकारी और कश्मीरी पंडित हैं. उन्हें बंगाल में एक किडनैप हुई लड़की की खोज के लिए तैनात किया गया होता है.
सिमरत कौर ने किसानों हुई लड़की यानी भारती बनर्जी का किरदार निभाया है, जो एक बंगाली लड़की है. वहीं, ईक्लाव्य सूद ने अमरजीत अरोड़ा का किरदार निभाया है, जो उसका प्यार है. दूसरी तरफ फिल्म में अनुपम खेर ने महात्मा गांधी के रूप में और राजेश खेरा ने मोहम्मद अली जिन्ना के रूप में शानदार परफॉर्मेंस से अपनी छाप छोड़ी है.
फिल्म में दूसरे कलाकारों की बात करें तो, इसमें मोहन कपूर, दिब्येंदु भट्टाचार्य, प्रियांशु चटर्जी, शाश्वत चटर्जी, सौरव दास और पुनीत इस्सर शामिल हैं, जिन्होंने अपने किरदार में जान फूंकी है. वहीं, नमाशी चक्रवर्ती ने गुलाम सरवर हुसैनि का किरदार निभाया है, जो नोआखली के नेता है. वही लोगों को भड़काता और बड़े पैमाने पर हत्याएं करवाता है. फिल्म में पल्लवी जोशी ने भारती बनर्जी के बुढ़े किरदारों को निभाया है, जो मानसिक रूप से कमजोर है. मिथुन चक्रवर्ती की बात करें तो उन्होंने एक पागल पूर्व पुलिस वाले, ‘द मैडमैन’ का किरदार निभाया है, जिसकी हालत बदहाल होती है. हालांकि, उन्होंने अपने डराने वाले रूप में भी जबरदस्त परफॉरमेंस दी है.
यह विवेक रंजन अग्निहोत्री की फाइल्स ट्रिलॉजी का तीसरा हिस्सा है, जिसमें द ताशकंद फाइल्स और द कश्मीर फाइल्स पहले थे. यह फिल्म भी भारत के इतिहास के एक अनकहे और छुपे हुए अध्याय को सामने लाती है, और एक जरूरी बातचीत को जन्म देती है. राजनीतिक हालातों को दिखाने से लेकर जमीनी हकीकत पर रोशनी डालने तक, विवेक अग्निहोत्री एक बार फिर सिनेमा की अपनी निडर भावना को इस फिल्म के जरिए लेकर आए हैं.
यह फिल्म नोआखली में बाहरी लोगों द्वारा बंगालियों और सिखों के नरसंहार को दिखाती है. फिल्म के कुछ सीन सबसे ज्यादा दिल दहला देने वाले और दर्द भरे हैं, जिसमें सड़कों पर पड़ी लाशें, हर जगह खून-खराबा और खंभों से लटकते हुए बेजान लोग दिखाई देते हैं. बड़े पैमाने पर हुई हत्याओं और बंगालियों और दूसरों पर हुए जुल्मों को इस तरह से दिखाया गया है कि यह न केवल दर्द को बयां करता है, बल्कि दर्शकों को इसे गहराई से महसूस कराता है.
’द बंगाल फाइल्स’ में बहुत ज्यादा हिंसा और एक बिना डर के दिखाई गई सच्चाई है. यह फिल्म आज की पीढ़ी को ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ की भूली हुई घटनाओं के बारे में बताने की एक सच्ची कोशिश है. यह फिल्म अपनी इस लाइन पर खरी उतरती है, “अगर कश्मीर ने आपको दर्द दिया, तो बंगाल आपको डरा देगा.” हालांकि, हर अच्छी फिल्म में कुछ कमियां होती हैं और इस फिल्म में भी कुछ कमियां हैं. सबसे पहले, फिल्म काफी लंबी है, 3 घंटे 20 मिनट, जिसमें पहला भाग तो अच्छी गति से आगे बढ़ता है, लेकिन दूसरा भाग धीमा पड़ जाता है, जिससे थोड़ी बोरियत महसूस होती है. कई जगहों पर कुछ दृश्यों को बहुत लंबा खींचा गया है, अगर इसकी अवधि 3 घंटे होती, तो शायद दूसरे भाग की गति अच्छी होती.
दूसरी ओर, कहानी दो भागों में दिखाई जा रही है, एक पाकिस्तान के विभाजन से पहले और एक विभाजन के बाद. ऐसे में दृश्यों का अचानक बदलना थोड़ा उलझा देता है. कुल मिलाकर, फिल्म अच्छी है और आप इसे इस वीकेंड देखने का प्लान बना सकते हैं. मेरी तरफ से फिल्म को 5 में से 3.5 स्टार.