अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रक्षा विभाग यानी पेंटागन का नाम बदलकर युद्ध विभाग (War Department) करने का कार्यकारी आदेश जारी किया है. उन्होंने कहा कि यह नाम अमेरिका की सैन्य शक्ति और आक्रामक रणनीति को बेहतर तरीके से दर्शाता है.
क्या है ट्रंप की पेंटागन का नाम बदलने के पीछे की सोच?
ट्रंप का कहना है कि मौजूदा समय में रक्षा विभाग नाम वोक विचारधारा से जुड़ा हुआ लगता है. उन्होंने कहा कि 1789 से लेकर द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक अमेरिका की सेना वॉर डिपार्टमेंट के बैनर तले लड़ी. उनका मानना है कि नाम बदलने के बाद से अमेरिका ने कोई बड़ा युद्ध नहीं जीता, इसलिए पेंटागन का नाम फिर से युद्ध विभाग करना इतिहास और परंपरा को बहाल करना है. ट्रंप ने यह भी कहा कि युद्ध विभाग का नाम ज्यादा ताकतवर और बेहतर लगता है.
कांग्रेस और कानून की चुनौती
हालांकि, अमेरिकी संविधान के तहत संघीय विभागों का नाम बदलने का अधिकार केवल कांग्रेस के पास है. कैपिटल हिल पर ट्रंप समर्थक रिपब्लिकन सांसदों ने एक विधेयक पेश किया है ताकि इस बदलाव को कानून का दर्जा दिया जा सके. प्रतिनिधि ग्रेग स्ट्यूब और सीनेटर रिक स्कॉट तथा माइक ली ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. उनका कहना है कि यह कदम अमेरिकी सैनिकों की मारक क्षमता और प्रतिबद्धता को सम्मान देने जैसा है.
डिफेंस सेक्रेटरी पीट हेगसेथ ने ट्रंप का समर्थन करते हुए कहा कि नाम बदलने के बाद से हमने कोई बड़ा युद्ध नहीं जीता है. अब हमें केवल रक्षा नहीं, बल्कि आक्रामक रुख भी अपनाना होगा. हेगसेथ और ट्रंप पहले भी कॉनफ़ेडरेट जनरल्स के नाम वाले सैन्य ठिकानों को बहाल करने की कोशिश कर चुके हैं, जिसे कांग्रेस ने रोक दिया था.
युद्ध विभाग का इतिहास
युद्ध विभाग की स्थापना साल 1789 में की गई थी. हालांकि, बाद में साल 1947 में राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इसे पुनर्गठित कर रक्षा विभाग नाम दिया. इस विभाग के अंतर्गत सेना, नौसेना और वायु सेना शामिल हुईं. ट्रंप का दावा है कि युद्ध विभाग नाम के साथ अमेरिका ने जीत का शानदार इतिहास बनाया था.
पेंटागन का नाम बदलने पर क्यों है विवाद?
इस फैसले ने अमेरिकी राजनीति में हलचल मचा दी है. रिपब्लिकन नेता जहां इस कदम को अमेरिकी परंपरा का सम्मान बता रहे हैं, वहीं डेमोक्रेट्स इसे सत्ता का दुरुपयोग मान रहे हैं. प्रतिनिधि डॉन बेकन ने कहा कि ट्रंप प्रशासन कांग्रेस की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहा है.
ये भी पढ़ें: जबरन निर्वासन से अफगान परिवारों पर संकट, पाकिस्तान के कदम पर उठे सवाल