आज छठ महापर्व का दूसरा दिन, यानी खरना है. इस दिन को पूरे श्रद्धा और नियमों के साथ मनाया जाता है. आज शाम के समय व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखकर गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं. खरना की पूजा के साथ ही छठ के तीसरे दिन की तैयारी शुरू हो जाती है, जिसे सांध्य अर्घ्य कहा जाता है.

सांध्य अर्घ्य वह समय होता है जब डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. खरना के बाद व्रती और परिवार के सदस्य मिलकर रात में ही विशेष अर्घ्य की तैयारी में जुट जाते हैं. यह पूजा न सिर्फ सूर्य देव की उपासना है, बल्कि परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्य की कामना का प्रतीक भी है.

सांध्य अर्घ्य के लिए जो प्रसाद बनाया जाता है, वह पूरी तरह सात्विक और पवित्र होता है. इसे बनाते हुए शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है और इसे मिट्टी या पितल के शुद्ध बर्तन में ही बनाया जाता है. जिससे बनाने के लिए मिट्टी का चूल्हा और आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है.

सांध्य अर्घ्य के लिए ठेकुआ बनाने की पंरपरा है, जिसे घी में तला जाता है. इसके बाद चावल के लड्डू, केला, नारियल, शकरकंद, गन्ना और मौसमी जैसे फल भी शामिल किए जाते हैं. इन सब फलों को पानी से अच्छे से साफ कर, उसे एक साफ और पवित्र जगह पर रखा जाता है. संध्या अर्घ्य के समय इन सब चीज़ों को बांस या पीतल के सूपा में सजा कर घाट तक ले जाया जाता है.

छठ पूजा में प्रसाद का हर तत्व प्रतीकात्मक महत्व रखता है. गन्ना स्थायित्व का, केला समृद्धि का, और नारियल शुद्धता का प्रतीक माना गया है. ये सभी वस्तुएं मिलकर छठी मैया की आराधना का रूप लेती हैं. जिसे संध्या अर्घ्य के समय छठी मैया को अर्पित किया जाता है.

संध्या के समय जब सूर्य अस्त होने लगता है, तब व्रती घाट पर पहुंचकर दीपक जलाते हैं और सूर्य देव को इन सब प्रसादों का अर्घ्य देते हैं. इस समय वातावरण अत्यंत दिव्य और भावनात्मक होता है. जल में उतरकर भक्त अपनी आस्था और समर्पण को सूर्य की किरणों में अर्पित करते हैं.
Published at : 26 Oct 2025 04:08 PM (IST)
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