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बॉलीवुड का एक आर्टिस्ट अपने कई गानों के लिए मशहूर है. उभरता हुआ कलाकार अपनी आवाज नहीं, बल्कि लेखनी के लिए पहचाने जाते हैं. हम दीपक अग्रवाल की बात कर रहे हैं, जो अब तक कई मशहूर गानों को लिख चुके हैं.
2016 में आई फिल्म ‘खेल तो अब शुरू होगा’ में उनका पहला कंपोज किया टाइटल ट्रैक आया, जिसे शाहिद मल्ल्या ने गाया. गाना भले ही मेनस्ट्रीम चार्टबस्टर न बना हो, लेकिन इंडस्ट्री में लोग नोटिस करने लगे कि यह शख्स संगीत को लेकर गंभीर है. धीरे-धीरे दीपक की धुनें और उनके लिखे बोल अलग-अलग फिल्मों में सुनाई देने लगे. ‘जीना इसी का नाम है’ का टाइटल ट्रैक (गायक केके), एक कहानी जूली की का ‘फनारी’ (ममता शर्मा की आवाज में), ब्लैक मार्केट का ‘आ मेरे पास’, रक्तधार, जाने क्यों दे यारों और हाल में आई ‘लव इन ए टैक्सी’ के दो गाने ‘सफ़र’ और ‘कभी-कभी.’ हर जगह एक कोशिश साफ दिखी, कुछ ऐसा बनाने की जो ट्रेंड के हिसाब से हो, लेकिन बिना आत्मा खोए.
धीरे-धीरे दिल में उतरता है गीत
दीपक अग्रवाल ने बतौर गीतकार तिश्नगी के “सूफी सलाम” में राहत फतेह अली खान, मासूम के “गुजारिश” में जावेद अली और ‘ऊप्स अ देसी’ के “उड़ ले रे” जैसे गानों में अपनी कलम चलाई. उनके बोलों में कभी सादगी दिखती है, तो कभी गहराई. दीपक उन रचनाकारों में से हैं जो हर एल्बम में जरूरी नहीं कि सबसे ऊंची आवाज में दिखें, लेकिन जो बार-बार सुने जाने पर असर छोड़ते हैं. न कोई बनावटी इमेज, न सोशल मीडिया का जोर-शोर, बस लगातार काम और उस काम में ठहराव. ऐसे कलाकारों के लिए कोई एक “ब्रेक” नहीं होता, उनके लिए हर प्रोजेक्ट एक अगला कदम होता है. दीपक अग्रवाल उसी सफर पर हैं. वो न तो हर जगह छाए हुए हैं और शायद यही उनकी पहचान है जो उनके सच्चे सुरों का एक शांत और टिकाऊ सफर पन्नों से लोगों के दिलों तक जाता है.