नई दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका दायर की गई है, जिसमें चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के पंजीकरण और नियमन के लिए ठोस नियम बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि देश में फर्जी और बेनामी राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं। ये दल न सिर्फ अवैध गतिविधियों में संलिप्त लोगों को अपने पदाधिकारी बना रहे हैं, बल्कि भारी चंदा लेकर अपराधियों को संगठन में जगह दे रहे हैं। इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था और पारदर्शिता पर सीधा हमला हो रहा है।
याचिका में दावा किया गया है कि कई ऐसे दल अस्तित्व में आ गए हैं, जिन्होंने अपहरणकर्ताओं, ड्रग्स तस्करों, मनी लॉन्ड्रिंग करने वालों और कुख्यात अपराधियों को राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पदाधिकारी बना दिया है। इन दलों ने बड़ी धनराशि लेकर अपराधियों को संरक्षण दिया और उन्हें राजनीतिक वैधता प्रदान की। याचिका में यह भी आरोप है कि अलगाववादी समूहों ने भी राजनीतिक दल बनाकर चंदा इकट्ठा करने का रास्ता अपना लिया है और कई नेताओं को पुलिस सुरक्षा तक मिल चुकी है।
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काले धन को सफेद बनाने का मामला
याचिका में हाल ही में मीडिया में आई एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि आयकर विभाग ने एक फर्जी राजनीतिक दल पकड़ा, जो काले धन को सफेद करने का काम कर रहा था। इस दल पर आरोप है कि वह 20 प्रतिशत कमीशन लेकर काले धन को वैध चंदे में बदल रहा था। याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय का कहना है कि राजनीतिक दल सार्वजनिक कार्य करते हैं, इसलिए उनमें पारदर्शिता और जवाबदेही होना बेहद जरूरी है।
सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता की जरूरत
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और पारदर्शिता लाने के लिए कई सुधार कर चुका है। अब राजनीतिक दलों पर भी सख्त नियम लागू करना जरूरी है। अगर चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के लिए ठोस नियम बनाए, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती देगा। इसमें कहा गया है कि बिना नियमन के राजनीतिक दल लोकतंत्र को कमजोर करते हैं और जनता के भरोसे को तोड़ते हैं।
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कानून आयोग को भी सुझाव
याचिकाकर्ता ने वैकल्पिक रूप से मांग की है कि कानून आयोग को विकसित लोकतांत्रिक देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन कर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया जाए। रिपोर्ट में राजनीतिक दलों के पंजीकरण और नियमन की व्यवस्था हो, ताकि राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण को कम किया जा सके। याचिका में कहा गया है कि अगर राजनीतिक दल संविधान की सीमा में रहकर काम करेंगे, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित होगा और जनता का विश्वास मजबूत होगा।