Mahashivratri 2025: फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है जोकि इस साल 26 फरवरी 2025 को है. शिवाजी के कई अवतार हैं जिनमें काल भैरव भी एक है. काल भैरव को रुद्र का पूर्ण अवतार माना जाता है.
पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने ही काल भैरव की उत्पत्ति की. लेकिन काल भैरव का संबंध केवल भगवान शिव के अवतार से ही नहीं बल्कि काशी से भी है. इन्हें ‘काशी का कोतवाल’ कहा जाता है. आइए जानते हैं आखिर शिव ने कब की काल भैरव की उत्पत्ति और इन्हें क्यों बनाया काशी का कोतवाल.
शिव के रौद्र रूप से प्रकट हुए काल भैरव
स्कंद पुराण में भगवान शिव के रौद्र रूप से उत्पन्न हुए काल भैरव का वर्णन मिलता है. इसके अनुसार एक बार त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और शिव में इस बात को लेकर बहस होने लगी कि आखिर हम तीनों में श्रेष्ठ कौन है? तीनों ही स्वयं को महान बता रहे थे. ऐसे में कोई फैसला नहीं हो रहा था. तब फैसले के लिए ऋषि-मुनियों को बुलाया गया. ऋषि मुनियों ने बहुत ही सोच-विचार कर भगवान शिव को त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ बताया.
ऋषि मुनियों के मुख से शिवजी की प्रसन्नता सुन ब्रह्मा जी नाराज हो गए और उन्हें शिव से ईर्ष्या होने लगी. इस तरह क्रोध और इर्ष्या में आकर उन्होंने शिवजी को अपशब्द कह दिए. ब्रह्मा जी द्वारा किए अपमान से शिवजी बहुत क्रोधित हो गए और उनके क्रोध ने रौद्र रूप धारण कर लिया. इसी रौद्र रूप से काल भैरव की उत्पत्ति हुई. क्रोध की ज्वाला में काल भैरव इतने जल रहे थे कि उन्होंने प्रकट होते ही ब्रह्मा जी का पंचम सिर काट दिया. इस तरह से काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया.
ब्रह्म हत्या के पाप से इस तरह मुक्त हुए काल भैरव
ब्रह्म का पंचम सिर काटने के बाद भी काल भैरव का क्रोध कम नहीं हो रहा था. तब भगवान शिव ने काल भैरव से कहा कि ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए उसे तीर्थ यात्रा करनी पड़ेगी. इसके बाद काल भैरव विभिन्न तीर्थ स्थलों की यात्रा के लिए निकल पड़े. कई तीर्थ स्थलों की यात्रा करने के बाद सबसे आखिर में काल भैरव शिव की नगरी काशी पहुंचे. यहां काल भैरव ने पूजा अर्चना की और यहीं काल भैरव को जीवन के सत्य का ज्ञान प्राप्त हुआ और काशी में ही आकर उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई.
शिवजी ने बनाया काशी का कोतवाल
शिवजी ने जब काल भैरव को काशी में देखा तो वे वहां प्रकट हो गए और काल भैरव को काशी की सुरक्षा का अधिकार दिया. इसके बाद से ही वे काशी के कोतवाल बन गए और काशी की सुरक्षा की जिम्मेदारी काल भैरव पर है. मान्यता है कि काल भैरव काशी में आठ रूप में अलग-अलग हिस्सों में विराजमान हैं. जब भी कोई काशी आता है तो काल भैरव के दर्शन जरूर करता है. मान्यता है कि काल भैरव भक्तों की सभी पीड़ा दूर करते हैं.
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