Pitru Paksha 2025: आश्विन महीने की प्रतिपदा से अमावस्या तक की अवधि को पितृ पक्ष कहा जाता है. हिंदू धर्म में पितृ पक्ष के 15 दिन बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से होगी और 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ इसका समापन हो जाएगा.
पितृ पक्ष ऐसा समय होता है जब मरे हुए पूर्वजों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्म किए जाते हैं. मान्यता है कि पितृ पक्ष में किए इन कर्मकांडों से पितरों का आशीर्वाद मिलता है, पितृदोष से मुक्ति मिलती है और साथ ही पितरों की आत्मा भी तृप्त होती है.
मरने से पहले भी कर सकते हैं श्राद्ध
तर्पण और पिंडदान का नाम सुनते ही आमतौर पर लोगों को ऐसा लगता है कि ये मरे हुए पूर्वजों के निमित्त किए जाने वाले कर्मकांड हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार, मरने के बाद लोग पितृ बन जाते हैं और पितृ पक्ष में उनके परिवार वाले उनका श्राद्ध करते हैं. लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि, श्राद्ध उन लोगों का भी किया जाता है जिनकी मृत्यु नहीं हुई है. कुछ लोग मरने से पहले ही स्वयं अपना श्राद्ध कर्म कर लेते हैं. आइए जानते हैं क्या है इसका कारण, कौन होते हैं वे लोग और क्या जीवित व्यक्ति का श्राद्ध करना शास्त्र सम्मत है.
क्या जीवित व्यक्ति का श्राद्ध करना शास्त्र सम्मत है
गरुड़ पुराण और धर्मशास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि, व्यक्ति कुछ विशेष परिस्थितियों में अपने जीवनकाल में ही अपना श्राद्ध कर सकता है. इसे ‘आत्मश्राद्ध’ या ‘जीवित श्राद्ध’ कहते हैं. ऐसा श्राद्ध यह सुनिश्चित करता है कि, व्यक्ति ने मृत्यु से पहले अपने कर्म से आत्मा को तृप्ति प्रदान कर ली, जिससे कि मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को भटकना न पड़े.
मृत्यु से पहले कौन कर सकता है अपना श्राद्ध
- श्राद्ध का मूल विधान ऐसे पितरों के लिए होता है, जोकि अपना देह त्याग चुके हैं. लेकिन शास्त्रों में ऐसे लोगों के बारे में बताया गया है, जोकि अपना श्राद्ध जीवित रहते हुए भी कर सकते हैं.
- संन्यास लेने वाले साधु-संत या वैरागी साधक मृत्यु से पहले अपना श्राद्ध कर सकते हैं. श्राद्ध करने के बाद ये गृहस्थ जीवन और लौकिक बंधनों से मुक्त हो जाते हैं.
- अगर कोई अपने वंश या कुल का अंतिम पुरुष हो और उसके बाद परिवार में कोई वंश न हो तो भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपना श्राद्ध कर सकता है, जिससे कि उसकी मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को मुक्ति मिल जाए.
- हालांकि साधारण गृहस्थ व्यक्तियों के लिए जीवित श्राद्ध करना शास्त्र सम्मत नहीं है.
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